हनुमान चालीसा क्या है और क्यों पढ़ी जाती है:
हनुमान चालीसा तुलसीदास द्वारा रचित एक प्रसिद्ध भक्ति स्तोत्र है, जिसमें 40 छंद (चालीसा) हैं। हनुमान चालीसा में हनुमान जी की महानता, उनकी शक्तियों और उनके भक्तिपूर्ण कार्यों का वर्णन किया गया है। हनुमान चालीसा को पढ़ने से हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन की कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है। यह माना जाता है कि इसे पढ़ने से डर, नकारात्मक ऊर्जा और शत्रुओं से सुरक्षा मिलती है।
हनुमान चालीसा पढ़ने के लाभ:
- संकटों से मुक्ति: हनुमान चालीसा पढ़ने से जीवन के संकटों से मुक्ति मिलती है और हनुमान जी की कृपा से सभी बाधाएँ दूर होती हैं।
- भय से मुक्ति: इसका नियमित पाठ करने से मन से सभी प्रकार का डर और चिंता दूर हो जाती है।
- शत्रुओं से रक्षा: हनुमान चालीसा पढ़ने से शत्रुओं से रक्षा होती है और व्यक्ति में आत्मविश्वास बढ़ता है।
- स्वास्थ्य लाभ: यह माना जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं दूर होती हैं।
- आध्यात्मिक उन्नति: हनुमान जी की भक्ति से आत्मा का शुद्धिकरण होता है और व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।
हनुमान चालीसा पढ़ने का नियम:
- साफ–सफाई: हनुमान चालीसा का पाठ करने से पहले स्नान कर साफ कपड़े पहनने चाहिए।
- सच्चे मन से भक्ति: पाठ करते समय मन को शांत और एकाग्र रखना चाहिए और हनुमान जी के प्रति “सच्ची श्रद्धा” होनी चाहिए।
- नियमितता: हनुमान चालीसा का पाठ नियमित रूप से करने से अधिक लाभ मिलता है। इसे मंगलवार और शनिवार के दिन विशेष रूप से पढ़ा जाता है।
- संख्यात्मक नियम: कुछ लोग इसे 7, 11, 21, या 108 बार पढ़ते हैं, लेकिन यह पूरी तरह से व्यक्तिगत श्रद्धा पर निर्भर करता है।
- भोग अर्पण: हनुमान जी को लड्डू का भोग अर्पित करने के बाद चालीसा पढ़ने से अधिक पुण्य मिलता है।
इन नियमों का पालन करके हनुमान चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति को हनुमान जी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
आइए अब हम सब मिलकर हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं-
श्री हनुमान चालीसा
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
अर्थ: श्री गुरु के चरण कमलों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को साफ करके मैं श्री रघुनाथ जी के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो चारों फलों – धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को देने वाला है।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन–कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥
अर्थ: हे पवन कुमार! मैं आपको याद करता हूँ, क्योंकि मैं स्वयं को बुद्धिहीन समझता हूँ। आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए और मेरे सारे कष्ट और दोषों को दूर कर दीजिए।
॥ हनुमान चालीसा चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बलधामा, अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा, कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र और ध्वजा बिराजे, काँधे मूँज जनेउ साजे॥
संकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया, राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा, बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे, रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये, श्रीरघुबीर हरषि उर लाये॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई, तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं, अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते, कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू, लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहू को डरना॥
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत पिसाच निकट नहीं आवै, महावीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै, मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै, सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा, है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै, जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंत काल रघुबर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा, जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो सत बार पाठ कर कोई, छूटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप, राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥
अर्थ: हे पवनपुत्र हनुमान जी! आप सभी संकटों को हरने वाले और मंगलमूर्ति स्वरूप हैं। आप श्रीराम, लक्ष्मण और सीता जी सहित मेरे हृदय में निवास करें।
इस दोहे में भक्त हनुमान जी से प्रार्थना कर रहा है कि वे अपने कृपापूर्ण स्वरूप में अपने हृदय में निवास करें और उसे सभी संकटों से मुक्त करें।
–जय बजरंग बली-